रविवार, 22 जनवरी 2017

शब्द कम पड़ रहे



शब्द कम पड़ रहे मैं सृजन क्या करुं
कोई समिधा नहीं फिर यजन क्या करुं,
ईश रूठा है मुझसे बिना बात ही
मैं भी रोते नयन से भजन क्या करूं?

सोमवार, 2 जनवरी 2017

हमसफ़र में सफ़र

पहली तारीख की रात ट्रेन में कटी। एक टाइम का अघोषित उपवास रखना पड़ा। ट्रेन सात घंटे लेट है,
तो लग रहा है कि दिन में भी उपवास रखना पड़ेगा।
गोरखपुर से आज-कल एक ट्रेन चल रही है, हमसफ़र एक्सप्रेस।

ट्रेन के सारे डिब्बे वातानुकूलित हैं। देखने में भी यह किसी वर्ल्ड क्लास ट्रेन की तरह लगती है।
मेरे दोस्त अतहर ने नई-नई ट्रैवल एजेंसी खोली है।
उसी ने कहा कि भाई! हमसफ़र से जाओ। बेहतरीन ट्रेन है। आठ बजे तक दिल्ली रहोगे।
मैं भी खुश हो गया कि क्लास छूटेगी नहीं।
मेरी तरह जनरल डिब्बे में यात्रा करने वाले व्यक्ति का इस ट्रेन को स्वर्ग कहना भी कम है, इसे बैकुंठ धाम भी कहा जा सकता है
लेकिन इस ट्रेन ने मुझे नए साल की पहली रात को भूखा सुलाया। ट्रेन में चाय , पानी और अंडे वाले केक के अलावा कुछ भी खाने -पीने के लिए नहीं था।
मेरे जैसे शाकाहारी इंसान के लिए पानी पीकर सोने के अलावा कोई और विकल्प भी नहीं था।
भूखा होना आम दिनों से ज़्यादा तब अखरता है जब आप घर से आ रहे हों। दिन में चार टाइम गले तक ठूंस के खाने के बाद जब एक टाइम के लिए पेट को आराम मिलता है तब वह आराम किसी वेदना से कम नहीं होता। रात में मेरे पेट में चूहे कूद रहे थे।
गोरखपुर में खाना इसलिए नहीं खाया कि ट्रेन में खाना मिलेगा। ट्रेन ने उपवास करा दिया।
किसी-किसी को जनरल डिब्बा सूट करता है, वहां खाने-पीने का कार्यक्रम रात भर चलता है।
वहां धड़कनें बन्द हो सकती हैं लेकिन मुंह नहीं।
चाय-चाय की मधुर ध्वनि से नींद तोड़ने वाले इस डिब्बे के आस-पास नहीं फटक रहे।
हमसफ़र में, मैं सच में 'सफ़र' कर रहा हूँ ।

मुझे याद नहीं कि पिछली बार मैं कब रिजर्वेशन करवा के घर गया था। लोकल डिब्बे की खचाखच भीड़ से मुझे कोई ख़ास समस्या नहीं होती है।शौचालय के बगल में बैठ कर इत्र जैसी ख़ुशबू का नियमित महकना मुझे चमत्कृत नहीं करता।
लोगों के द्वारा छोड़े गए कुछ विशिष्ट अपशिष्ट पदार्थों के बीच प्राकृतिक पीड़ा से उबरना भी असाध्य नहीं लगता। लोकल डिब्बा से मुझे विशेष प्रेम है। वहीं बैठकर अपने देहाती होने का एहसास होता है।
कहते हैं न कि हर चीज़ हर किसी के लिए नहीं होती। मेरे लिए 'जो मिले वही ट्रेन पकड़ लो' वाला सिद्धांत ठीक है।
सात घंटे लेट ट्रेन में जनरल डिब्बे की चें-पों मिस कर रहा हूँ।
दुआ कीजिए ये ट्रेन और लेट न हो....बैलगाड़ी से रेलगाड़ी जैसी चाल पकड़े तो बात बने 😓।