पेज

मंगलवार, 5 मई 2015

पत्रकारिता पर सवाल

Electronic media के चटपटी ख़बरों की script लिखने वाले पत्रकारों से मुझे मिलना है,अगर आपका कोई जुगाड़ हो तो मुझे जरूर बताइएगा ।
मुझे उनसे पूछना है की आप सब इतने संवेदनहीन कैसे हो सकते हैं? चटपटी ख़बरों और टी.आर.पी के चक्कर में किसी के सामाजिक जीवन का सत्यानाश कैसे कर लेते हैं.? क्या लिखते हैं आप?
बलात्कार की, यौन शोषण की घटनाओं का इतना जीवंत वर्णन, इतना मार्मिक रेखाचित्रण तो महादेवी वर्मा न कर पातीं जितना आप कर ले जाते हैं। भाई! दिल से बधाई के पात्र हैं आप।
पता है आपको, आपका धंधा लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है। आप भी बधें हैं कानून से लेकिन इतना कानून तो अपराधी भी नहीं तोड़ते जितना की आप सब तोड़ते हैं। बड़ा नेक काम करते हैं आप।
भारतीय दंड संहिता की एक धारा है जिसका अक्सर आप लोग उल्लंघन करते हैं पढ़ लीजिये क्योंकि जानबूझ कर कानून तोड़ने में तो शिवत्व जैसा आनन्द है।
धारा है-
Section 228A in The Indian Penal Code-
Disclosure of identity of the victim
of certain offences etc.—
(1) Whoever prints or publishes the name
or any matter which may make known the
identity of any person against whom an
offence under section 376, section 376A,
section 376B, section 376C or section 376D
is alleged or found to have been committed
(hereafter in this section referred to as the
victim) shall be punished with
imprisonment of either description for a
term which may extend to two years and
shall also be liable to fine.
पर दुर्भाग्य से मिडिया पर कोई लगाम नहीं कसता क्योंकि ये अभिव्यक्ति के नाम पर कुछ भी कह सकते हैं, कितने भी कानूनों का उल्लंघन कर सकते हैं क्योंकि पत्रकार जो ठहरे।
खैर लगाम कसे भी तो कौन भ्रष्ट नेता? उन्हें खुद लगाम की जरुरत है।
आज फेसबुक पे एक स्टेटस पढ़ा। बड़े वरिष्ठ साहित्यकार हैं, कुमार विश्वास की प्रसिद्धि के लिए उनके अवैध सम्बन्धों को वजह बता रहे थे, कल से कुछ ड्रामा चल रहा है न news channels पर,कुमार विश्वास को लेकर?
'होठों पर गंगा हो हाथों में तिरंगा हो', 'है नमन उनको'जैसी प्रसिद्द कवितायेँ जब उन्होंने लिखा तो वो देशभक्त थे, मेहमान की तरह होली,दीपावली,दशहरा पर बुलाये जाते थे पर आज-कल तो कोई और सीन चल रहा है। कतिपय ईर्ष्यालु तथाकथित साहित्यकारों और बिकाऊ पत्रकारों ने उन्हें व्यभिचारी भी बना दिया।
शर्म आती है ऐसे साहित्य के खिलाडियों पर जो बेतुके बयान देते रहते हैं। आप साहित्य को गन्दा ही करेंगे और आपके मित्र पत्रकारिता को। शर्म आती है आपके योग्यता पर। इस लायक लिखो कि लोग आपको पसंद करें, किसी के लोकप्रिय होने पर आपत्ति क्यों?
अरे हाँ! मैं तो पत्रकारिता की बात कर रहा था,लीक से भटक गया।
भाई! आप बेशक अपने channels पर adult entertainment चलायें पर उन्हें ज़रा आम खबरों से अलग रखा करें, हम विद्यार्थी हैं कभी-कभी समाचार देखना आवश्यक हो जाता है लेकिन हमें समाचार देखना होता है बलात्कार नहीं।
ऐसे मनोरंजक कार्यक्रम रात में चलाया करें 11बजे के बाद। जरूर पसंद किये जाएंगे, आपकी लोकप्रियता तो पक्का आपके घटिया सोच पर टिकी है...सोचते रहें।
बचपन से ही हमें अश्लील साहित्य से दूर रहने के निर्देश मिलते रहे हैं, बड़े हुए तो कुछ अच्छा पढ़ने की आदत हो गयी, पर मीडिया ने मस्त अश्लीलता सिखायी।
सोच रहा हूँ इस बार मनोरम कहानी, सरस सलिल, मदहोश कहानियाँ इत्यादि को subscribe कर लूँ ये ज्ञान सफलता दिलाने में सहयोग करेंगे।
ख़ैर, अभी पैसे नहीं हैं अगली बार..
जब भी किसी कवी/साहित्यकार पर चारित्रिक आरोप लगते हैं तो मन कचोटता है।पत्रकार तो बुद्धिजीवी वर्ग में गिने जाते हैं इनसे ऐसे व्यवहार की अपेक्षा नहीं होती है पर अपेक्षाओं का अंत यही होता है।
कुमार विश्वास यदि केवल कवि होते तो आहत हो वानप्रस्थ रखते किंतु अब वो नेता भी हैं..थोड़े ढीट हो गए हैं..तो ये सब आम बात है उनके लिए।
यह पवित्र व्यवसाय जब से धंधा बना तबसे लोकतंत्र भी पानी मांगने लगा।
खैर,तनिक स्तरीय लिखिए मित्र!
कब तक व्यभिचार को मिर्च-मसाला लगा कर पेश करेंगे? कब तक अभिव्यक्ति के नाम पर बदतमीज़ी परोसी जायेगी?
हद है।
आप लोगों की वजह से ही अच्छे पत्रकार हाशिये पर हैं या संघर्ष कर रहे हैं। न उन्हें कोई जानता है न जान पायेगा क्योंकि भारतीय मानसिकता ही कुत्सित हो चुकी है..सच के नाम पर कितनी भी बेहूदगी करो जायज है, पर स्तरीय साहित्य या पत्रकारिता गले के नीचे नहीं उतरती।
मुंशी प्रेमचन्द्र जी ने ठीक ही कहा है- "धूर्त व्यक्ति का अपनी भावनाओं पर जो नियंत्रण होता है वह किसी सिद्ध योगी के लिए भी कठिन है।"
धूर्त नहीं जानता किसे कहते हैं पर शायद आप लोगों से उनकी शक्लें मिलती होंगी।

15 टिप्‍पणियां:

  1. प्रिय अभिषेक जी, आपका यह ब्लॉग पढ़कर लगा कि नवयुवक आज भी कितने पवित्र हैं और उनके अन्दर पवित्र अग्नि प्रज्वलित है. एक और मेरी मित्र मंडली में हैं कुमार अभिषेक उनके दिल में भी ऐसी ही आग है इसलिए दुष्यंत कुमार की पंक्तियां ..... मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
    हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभार सर!
      ये बड़ों के सतत् स्नेह का सम्बल है, अभिषेक मेरे भी मित्र हैं फेसबुक पर.बहुत अच्छा लिखते भी हैं।

      हटाएं
  2. प्रिय अभिषेक जी

    आपके इन लेख को पढ़ के दिल को बहुत तसल्ली हुई की आप के और जे एल सिंह साहब जैसे सोचने वाले अभी भी है इस दुनिया में। तभी तो शायद यह दुनिया टिकी हुई है। वर्ना यह दुनिया कब की समाप्त हो गयी होती ।
    मैं कल से इस स्तरहीन पत्रकारिता के खिलाफ लड़ रहा हूँ क्यूंकि कुछ फेसबुकिये पत्रकारों ने तो टीवी चैनेल के स्तरहीन पत्रकारो से 100 गुना ज्यादा स्तरहीनता का परिचय दिया है। ये फेसबुकिये पत्रकारो ने तो गालियों के प्रयोग को अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझ लिया है। खैर जिसे अपने पत्रकारिता से देश की सोच को सकारात्मकता और सच्चाई को बढ़ावा देना चाहिए। जब वे ही अपना स्तर इतना गिरा दिए हैं की उनको देख के घिन्न आने लगी है। तो फेसबुकिये पत्रकार तो फेक पत्रकार हैं इनका तो स्तरहीन होना लाज़मी ही हो जायेगा क्यूंकि ये फेसबुकिये पत्रकार इन टीवी चॅनेल्स के स्तरहीन पत्रकारो के द्वारा बताये गए फेक समाचारों पे अपने आप को और भी स्तरहीन बनाने की होड़ में लग जाते हैं और इतना ज्यादा अपना स्तर गिरा देते हैं कि सीधा गालियां लिखना शुरू कर देते हैं। जैसे गाली लिखना उनका जन्मसिद्ध अधिकार हो।

    खैर ये तो ऐसे ही रहेंगे । मगर आज आपके इस लेख की जितनी भी तारीफ की जाए वह कम पड़ेगी इसलिए आपके सोच और आपके इस लेख के लिए मेरा आपको कोटि कोटि नमन ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभार सर! यह युद्ध सतत चलना चाहिए,
      देश के भविष्य का सवाल है।

      हटाएं
  3. पत्रकारिता के गिरते स्तर पर सार्थक लेख।

    जवाब देंहटाएं
  4. मित्रवर अभिषेक जी आपका लेख बहुत विस्तृत लेख है और जानकारी भरा है ! आप पत्रकारिता पर सवाल उठा सकते हैं क्योंकि आप किसी पार्टी विशेष से नही जुड़े हैं लेकिन जब आप एक पार्टी के तौर पर बात करते हैं तो आपकी भावनाओं पर संदेह होना लाजमी है ! श्री जवाहर सिंह जी मेरे बहुत गहरे ब्लॉगर मित्र हैं और संदीप मेरी जिंदगी के अहम पलो में साझीदार रहे हैं ! वो मेरे साथ पढ़े हैं ! लेकिन सवाल सिर्फ सवाल न रह जाए ! मित्रवर अभिषेक जी , क्या जो लोग अब रहे हैं उन्होंने तब क्यों नही सवाल उठाया जब वो इसी कुत्सित मीडिया का फायदा उठा रहे थे ? मित्रवर - ये तब क्यों नही बोले जब इनके 10 -१० घंटे लाइव दिखाया जा रहा था ? तब मीडिया ने इनको हद से ज्यादा तवज्जो दी और एक पार्टी का सत्यानाश कर दिया ! मैं उस पार्टी का कतई समर्थक नही हूँ लेकिन ये कहाँ का नियम है की मीठा मीठा गप्प गप्प आउट खट्टा खट्टा थू ! अपने हिसाब से मीडिया चले तो फिर चौथा स्तम्भ कैसे रह जाएगा ? मैं और आप किसी नेता से सीधा सवाल तो नही पूछ सकते तो मीडिया हमारे ही सवाल तो पूछता है !! क्यूंकि अब ये सरकार में हैं और इन्हें न जवाब देने की आदत है और न कुछ सिद्ध करने की ! इन्हें केवल सवाल पूछना आता है , लेकिन आपको जवाब भी देने होंगे !
    दूसरी बात , महापुरुष कहते हैं की कुमार साब का परिवार बेहद आहात है , समझ में आती है बात ! सवाल उठाते हैं लोग ! बच्चों पर असर होता है लेकिन ऐसा आपने भी किसी और के साथ किया है , तब आप अनभिज्ञ थे , आप अनजान थे ? आप मुर्ख थे , आप पागल थे , आप इंसेन्सिटिवे थे ? या सिर्फ इस देश में आपको ही ये अधिकार है कि आप ही किसी की बेइज्जती कर सकते हैं ? आपको किसने ये अधिकार दे दिया की आप जो चाहें वो करें आप से कोई सवाल न करे ? दो नियम चाहते हैं ये अपने लिए ! इनके लिए अलग दूसरों के लिए अलग ! आप सहमत हैं ? इनका आदमी दो करोड़ की घूस ले तो पवित्र , इनका आदमी फ़र्ज़ी डिग्री रखे तो पवित्र , इनका आदमी महिलाओं की बेइज्जती करे तो वो पवित्र ! क्या ऐसा संभव है ? क्या आप यही चाहते हैं तिवारी जी , क्या आप यही चाहते हैं आदरणीय जवाहर सिंह जी ? अगर यही चाहते हैं मुझे ये फांसी लगा दें सिर्फ सुर्खियां बटोरने के लोइये , मेरा क्या कोई महत्व नहीं ? या सिर्फ आशुतोष रो जाएगा तो सब कुछ धूल जाएगा ?

    जवाब देंहटाएं
  5. आदरणीय योगी भैया!
    आभार अपने मेरे आलेख को गंभीरता से पढ़ा।
    मेरा क्रोध कुमार विश्वास के अवैध संबंधों के खुलासे पे नहीं है,मेरा क्रोध है इस बेहूदा खबरों पर,क्षमा चाहता हूँ असंसदीय शब्द प्रयोग किया पर दुःख होता है।
    मैं किसी पार्टी का सदस्य नहीं, बेहद अराजनैतिक व्यक्ति हूँ। आम आदमी पार्टी से कभी कोई लगाव भी नहीं रहा क्योंकि जनता हूँ कि nationalist की छवि में ये घोर communist हैं जिनसे मुझे भी नफरत है। एक नेता के तौर पर कुमार जैसे भी हों कवि अच्छे हैं। कभी-कभी बातें भी अच्छी करते हैं, अपने मेरा आलेख ध्यान से पढ़ा हो तो मैंने एक जगह उनके लिए पतित शब्द भी प्रयोग किया है, जनता हूँ एक बार इंसान नेता बन जाए तो बिना कलंकित हुए वो नहीं रह सकता। आपका मैं पाठक रहा हूँ विगत दो वर्षों से, बड़े भाई की तरह आपके लिए संम्मान है।
    मैंने मीडिया की बात की है,मीडिया को भोग्या नहीं बनना चाहिए। लोकतंत्र की मज़बूत स्तम्भ है,यूँ बहक जायेगी तो देश का सत्यानाश हो जायेगा। दुःख इस बात का है कि अच्छे पत्रकार, पत्रिकाएं,साहित्यकार हाशिये पर हैं वजह भी उनका श्रृंगारिक न होना है। क्या आपको नहीं लगता की दुश्मन पर भी मिथ्या आरोप गढ़ना अनैतिक है? क्या आपके प्रश्न नितांत वैयक्तिक नहीं हो रहे? किसी एक पार्टी का नाम जानना चाहूँगा जहाँ आरोप-प्रत्यारोप न लगाये जाते हों,जो मीडिया को खरीदते न हों...हमारा आपका काम तो सच लिखना है....जो गलत करे उसे खींचना है.....आप की समझ मुझसे अधिक है...आपके रुष्ट होने का कोई कारण होगा...पर भैया! मीडिया निष्पक्ष होनी चाहिए या नहीं? क्या समाचार के नाम पर adult entertainment परोसना उचित है?
    आप भी आहत हैं मैं भी आहत हूँ..........परिवर्तन की प्रतीक्षा है।

    जवाब देंहटाएं
  6. सहमत हूँ आपके विचारों से मित्रवर अभिषेक जी ! मीडिया को निश्चित रूप से निस्पक्ष और जिम्मेदार होना ही चाहिए किन्तु मीडिया भी बाइस दीखता है ज्यादातर ! कुमार का मैं व्यक्तिगत रूप से बहुत सम्मान करता हूँ , लेकिन कवि के रूप में ! सही गलत न मुझे मालुम , न आपको ! सवाल सिर्फ इतना सा था कि ऑफर कुमार इस बात को पहले ही कह देते कि भाई इस महिला से मेरा कोई अनैतिक सम्बन्ध नही है तो उसका परिवार बच जाता ! ये एक पुण्य भी होता !

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सही कहा आपने...मिडिया को अपनी मर्यादा का ख्याल रखना चाहिए . बढ़िया आलेख .

    जवाब देंहटाएं
  8. विचारोत्तेजक सार्थक आलेख।

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत खूब अभिषेक जी, आपका लेख आज की संवेदनहीन पत्रकारिता पर कठोर प्रहार करता है।

    जवाब देंहटाएं
  10. टी आर पी के लिये कुछ भी करेगा।

    जवाब देंहटाएं
  11. आपके इस ज्वलंत लेख का उल्लेख सोमवार की आज की चर्चा, "क्यों गूगल+ पृष्ठ पर दिखे एक ही रचना कई बार (अ-३ / १९७२, चर्चामंच)" पर भी की गई है. सूचनार्थ.
    ~ अनूषा
    http://charchamanch.blogspot.in/2015/05/blog-post.html

    जवाब देंहटाएं
  12. बेलगाम मीडिया अपने आप को खुदा समज्झने लग गया है ... वो सोचते हैं जिसको चाहे उठा सकते हैं जिसको चाहे गिरा ... सभी उसका इस्तेमाल अपने स्वार्थ को करते हैं ...

    जवाब देंहटाएं