बुधवार, 23 जनवरी 2013

जीवन

''मैंने रातों में जग के देखा,  

 

             और दिनों में सो के देखा ,


दोनों में कुछ हम खोते हैं,

                  हँसते भी हैं रोते भी हैं।''

                    

गुरुवार, 10 जनवरी 2013

गुमनाम

कितना अँधेरा है यहाँ ,
      राह चलते चेहरे गुम 
हो जाते हैं, 
 साथ चलने वाले 
 कब राह बदल दें ,
कुछ पता ही नहीं चलता ,
अँधेरा और बढ़ता जाता है, 
गुमनामी शुरू होती 
जाती है,
किसे अपना कहें , 
अपनी परछाईं साथ नहीं देती 
लोग तो फिर भी लोग हैं ...