मंगलवार, 16 अक्तूबर 2012

संकल्प


कैसा यह मेरा जीवन है,
 अर्थवान भी अर्थहीन भी,
 बिन बूंदों के बादल जैसा,
 आवश्यक भी महत्वहीन भी ,
 जडवत हूँ चेतन भी हूँ,
 किन्तु चेतना सीमित है ,
जा सकता हूँ नभ पार अभी ,
 आशा भी अवलंबित है ,
 कई किरण हैं उस प्रकाश के ,
 जो जीवन का है गंतव्य ,
 किन्तु कही बाधा अटकी है,
 सीमित करती जो वक्तव्य ,
 मैं अक्सर डग-मग होता हूँ,
 नभ के उत्तेजित पवनों से,
 थक हार बैठता हूँ प्रायः,
 थल के दुखदाई वचनों से
 ये जग मेरे अनकूल नहीं ,
 मुझको अनुकूलन लाना है,
 सींचित यदि सत्य रहा मुझमें,
 तो जग को स्वर्ग बनाना है...

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